गुमसुम, गुपचुप
तन्हा सी……
कौन है ये ?
मैं तो नही ?
फिर……..
सब इसे मेरे नाम से,
क्यों पुकार रहे !
मैंने तो अपने चेहरे को
सदा मुस्कान से था ढका हुआ
फिर आज ये कैसे हुआ ?
कि, असली चेहरा सबको दिखा
शायद ………..
अंतर्वेदना इतनी बढी कि
वो, मुस्कान भी उसे छुपा ना सकी
जिससे चेहरे की उदासी थी ढकी
हर चेहरा जो हँसता है
जरूरी नही, कि वो प्रसन्न ही हो
—***—
@ शशि शर्मा ‘खुशी’
हर चेहरा जो हँसता है
जरूरी नही, कि वो प्रसन्न ही हो… सूंदर पंक्तिया
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उत्साहवर्धन करने व सराहने के लिये हार्दिक आभार दिनेश जी,,,
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